वर्तमान समय में हमारे जीवन में मातृभाषा का महत्व लगातार कम होता जा रहा है। हर व्यक्ति अँग्रेज़ी की ओर आकर्षित है और अपनी भावी पीढ़ी को भी इसी भाषा का ज्ञान देकर शिक्षित करना चाहता है। ऐसे समय में मातृभाषा के उपयोग और उसकी प्रगति में पतन होना कोई आश्चर्य की बात नही है। यह बात सत्य है कि अँग्रेज़ी ने वैश्विक स्तर पर इतनी ख्याति प्राप्त कर ली है और स्वयं में इतने ज्ञान का सन्चय कर लिया है कि इससे स्वयं को अछूता रख पाना असंभव-सी बात है। परंतु इसके लिए स्वयं को मातृभाषा की जड़ों से दूर करने से हम किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य नही रहेंगे।
मातृभाषा क्या है?
सर्वप्रथम तो ये प्रश्न उठता है कि मातृभाषा क्या है? वो भाषा जो एक बालक अपने जीवन में सबसे पहले सीखता है और जिस भाषा का प्रयोग उसके द्वारा परिवार एवं समाज में संचार के लिए किया जाता है, वही मातृभाषा होती है। प्रत्येक व्यक्ति की एक मातृभाषा होती है। मातृभाषा केवल विचारों को प्रकट करने का साधन ही नही है बल्कि ये आपकी विरासत है और आपकी पहचान है। जब भी आपके मन में कोई विचार आता है, तो वो आपकी मातृभाषा में ही होता है। ऐसे में अगर आप अपनी मातृभाषा से दूर जाने का प्रयास करते हैं, तो आप अपनी असली पहचान से दूर भाग रहे हैं और उसे अस्वीकार कर रहे हैं।
छात्र जीवन में मातृभाषा का महत्व
अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने से कई लाभ होते हैं। पहली बात तो ये है कि किसी भी व्यक्ति के बचपन में ज्ञान की नींव मातृभाषा में ही रखी जाती है। आजकल माता-पिता प्रारंभ से ही अपने बच्चों को अँग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाना पसंद करते हैं। लेकिन विभिन्न वैज्ञानिक खोजों और शोधों ने ये साबित किया है कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में होना ही सर्वश्रेष्ठ है। इसका कारण ये है क़ि बच्चे जिस भाषा को अपने चारों तरफ सुनते है और जानते हैं उसी भाषा में वे ज्ञान को जल्दी ग्रहण कर सकते हैं और अधिक रचनात्मक हो सकते है।
हम अक्सर ये भी देखते हैं कि क्योंकि विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली चीज़ें प्रायः अँग्रेज़ी में होती है। इस कारण से अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों के अध्ययन में कोई सहायता नही कर सकते और बच्चे पूरी तरह से विद्यालय पर ही आश्रित हो जाते है। परंतु जो बच्चे मातृभाषा में ही अपनी पढ़ाई करते है, उनकी प्रारंभिक शिक्षा में उनके माता-पिता और परिवार के दूसरे लोग भी अपना योगदान दे सकते है। दूसरी तरफ़ इससे बच्चों में अधिक रचनात्मकता और बेहतर विचार सृजित होते हैं। वैज्ञानिक शोधों में ऐसे ही बच्चे मेधावी और प्रतिभाशाली साबित हुए हैं।
दूसरी भाषाओं का ज्ञान
वर्तमान समय में द्विभाषीय या त्रिभाषीय होना कोई बड़ी बात नही है। पुराने समय के विपरीत, आज दूसरी भाषाओं को सीखने और उनका ज्ञान प्राप्त करने को अधिक ज़ोर दिया जाता है। हमारे आसपास भी कई ऐसे लोग होते है जो हिन्दी और अँग्रेज़ी के साथ अपनी क्षेत्रीय भाषा का भी ज्ञान रखते हैं। इसका कारण है प्रत्येक भाषा में मौजूद ज्ञान का भंडार और वैश्विक व्यापार जिसमें काम या नौकरी पाने के लिए दूसरी भाषाओं को सीखना आवश्यक होता है। ऐसे समय में दूसरी भाषा को सीखना कोई बुरी बात नही है लेकिन इसके लिए अपनी ही मातृ भाषा से दूरी बना लेना पूर्णतः गलत है। मातृभाषा ही आपकी पहचान है और यही वो द्वार है जिससे आप किसी नयी भाषा के संसार में प्रवेश कर सकते है। बिना मातृभाषा के ज्ञान के दूसरी भाषा को सीखना असंभव है।
वर्तमान समय में मातृभाषा की स्थिति
आज भारत में लोग अँग्रेज़ी को सिर्फ़ एक भाषा नही बल्कि सफल होने का एकमात्र तरीका मानने लगे हैं। वे सोचते है कि अगर वे और उनके बच्चे अँग्रेज़ी में निपूर्ण नही होंगे, तो वे सफलता प्राप्त नही कर सकेंगे और समाज में उनका स्थान नीचा हो जाएगा। इन मिथकों के परिणामस्वरूप ही आज हम अपनी संस्कृति को भूलकर पश्चिमी संस्कृति को अपनाते जा रहे है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी मातृभाषा को बहुत महत्व दिया है। वे लोगों में एकता और भाईचारे को बनाए रखने के लिए मातृ भाषा को आवश्यक मानते थे और अँग्रेज़ी गुलामी को समाप्त करने के लिए मातृभाषा के प्रयोग पर जोर देते थे। इन सभी बातों से ये साबित होता है कि हमारी मातृभाषा हमारे जीवन में बहुत महत्व रखती है और बच्चों को मेधावी और प्रतिभाशाली बनाती है इसलिए हमें अपने बच्चों को घर में और उनके दैनिक जीवन में मातृभाषा में ही बातचीत करने और उसका प्रयोग करने की शिक्षा देनी चाहिए। वर्तमान समय में अपनी भाषा को बढ़ावा देने की ज़रूरत है जिससे कि वो ऊंचाईयों को प्राप्त करे और विकसित हो क्योंकि अगर हम अपनी ही मातृभाषा में रूचि नही लेंगे, तो एक दिन हम स्वयं को और अपनी पहचान को ही खो बैठेंगे।