देश की महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर है। वो ये की जल्द ही एक कानून अस्तित्व में आने वाला है जिसके बाद महिलाओं को ऑनलाईन या यू कहें कि इंटरनेट विभिन्न प्लेटफार्मों पर प्रताडि़त करने वाले मुजरिम करार दिये जाएंगे। वो चाहे फिर फेसबुक हो, टवीटर हो, इंस्टाग्राम हो या फिर व्हाट्सएप या फिर लोकल केबल चैनल, किसी भी प्रकार का चेट एप, टेक्स मैसेज, तस्वीर, पेंटिंग, लेबल, राईटिंग या फिर विज्ञापन या कोई अन्य तकनीक या तरीका। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिला अशिष्ट निरूपण (निषेध) अधिनियम (आईआरडब्ल्यूए), 1986, का दायरा बढ़ाने के लिए संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है।
ये प्रस्ताव महिला आयोग, संसदीय स्थाई समिति, महिला अधिकारों के लिए लड़ रहे गैर सरकारी संगठनों-समूहों की तरफ से आए सुझावों के मद्दनज़र तैयार किया गया है। हालांकि ये संशोधन प्रस्ताव कांग्रेस की यूपीए सरकार के दूसरे दौर के अंतिम चरण वर्ष 2014 में भी पेश किया था, लेकिन तब इस पर बाद में न कोई चर्चा हुई न ही इसे पारित ही किया जा सका। इस संशोधन प्रस्ताव को अब पुन पेश किया गया है। मंत्रिमंडल की बैठक में इस प्रस्ताव पर सहमति बनने के बाद इसे संसद में पारित कर कानून का रूप दिया जाना है। महिलाओं को भारत में ऑनलाईन प्लेटफार्मों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उत्पीड़न अभद्र टिप्पणीयों, मोर्फेड तस्वीरों, मैसेज और एमएमएस के तौर पर किया जाता है।
मशहूर लोगों को ट्रोल करना अब भारत में आम बात हो गई है, लेकिन इस संशोधन के कानून के तौर पर अस्तित्व में आने के बाद इन पर रोक लग सकेगी, क्योंकि उत्पीडऩ के विभिन्न रूपों को इस प्रस्तावित संशोधन में न केवल परिभाषित किया गया है, बल्कि उनके लिए अलग अलग सजा भी तय की गई है। प्रस्ताव में महिला अशिष्ट निरूपण (निषेध) अधिनियम (आईआरडब्ल्यूए), 1986 का दायरा बढ़ाने के लिए संशोधन का ये प्रस्ताव है, इससे इस अधिनियम के दायरे को व्यापक किया जाना शामिल है। विज्ञापन की परिभाषा में संशोधन में डिजिटल स्वरूप या इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप अथवा होर्डिंग या एसएमएस, एमएमएस आदि के जरिए विज्ञापन को शामिल किया जाएगा।
क्या है नया संशोधन
किसी सामग्री को ऑनलाईन स्र्कूलेट करने, वितरित करने, फार्वड करने सहित तमाम तरीकों को इसमें शामिल करते हुए वितरण की परिभाषा में संशोधन करते हुए इनके प्रकाशन, लाइसेंस या कम्प्यूटर संसाधन का उपयोग कर अपलोड करने अथवा संचार उपकरण शामिल किए जाने का प्रस्ताव है। संशोधन में प्रकाशन शब्द को परिभाषित करने के लिए नई परिभाषा को जोड़ा जाएगा। यही नहीं अधिनियम की धारा-4 में ये प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति ऐसी सामग्री प्रकाशित या वितरित अथवा वितरित करने के लिए तैयार नहीं कर सकता, जिसमें महिलाओं का किसी भी तरीके से अशिष्ट निरूपण (अर्मियादित चित्रण) किया गया हो।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) 2000 के अंतर्गत प्रदत्त दंड के समान दंड के प्रावधान की सिफारिशभ्संशोधन में की गई है। आईटी एक्ट की धारा 67 और 67 ए में तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान उन मामलों के लिए है जिनमें किसी की छवि बिगाडऩे का प्रयास किया गया है। जबकि अश्लील सामग्री का प्रयोग किसी छवि बिगाडऩे के लिए किये जाने पर सात साल तक की सजा का प्रावधान है। संशोधन प्रस्ताव में ऐसे मामलों के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग (एनडब्ल्यूसी) के तत्वावधान में केन्द्रीकृत प्राधिकरण का गठन करने का प्रस्ताव किया गया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की अधिकारी इस प्राधिकरण की अध्यक्ष होंगी। इसमें भारतीय विज्ञापन मानक परिषद, भारतीय प्रेस परिषद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधि होंगे तथा महिला मुद्दों पर कार्य करने का अनुभव रखने वाली एक सदस्य होगी। ये प्राधिकरण प्रसारित या प्रकाशित की गई किसी भी प्रकार की सामग्री को लेकर मिलने वाली शिकायतों की जांच करेगा।