क्या आप आज के दौर में अपना एक भी दिन सोशल मीडिया के बिना कल्पना कर सकते है। एक बड़ी सी ना ही होगा आपका उत्तर, कम से कम शहर के लोग और युवा वर्ग इसके बिना नहीं रह सकता। सोशल मीडिया का जादू लोगों के सर चढ़ कर बोल रहा है, दुनिया की बहुत बड़ी आबादी इसकी गिरफ्त में है।
ये सोशल मीडिया है क्या?
साधारण भाषा में बात की जाये तो सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जो हमें इंटरनेट की दुनिया से अवगत कराता है। जैसे फेसबुक, व्हाट्सप, टविटर, इंस्ट्राग्राम, स्नैपचैट आदि। इन के उपयोग से आप अपनी बात दुनिया तक पहुँचा भी सकते है और दुनिया भर की बातें जान भी सकते है।
पर कहते है ना कि हर चीज के फायदे भी होते है और नुकसान भी, यह बात आज की सोशल मीडिया क्रांति के बारे में भी कही जा सकती है| अनगिनत फायदों के साथ इसके बहुत से दुष्प्रभाव भी देखे जा सकते है। जीवन को व्यवस्थित करने के साथ ही कई रिश्ते अव्यवस्थित भी हो गए है।
एक बहुत बड़ा सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव मानवीय रिश्तों पर भी पड़ा है | सोशल मीडिया ने किस प्रकार रिश्तों की डोर को मजबूत और कमजोर किया है आइये जाने:-
सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव
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- ये कहा जाता था कि जो आँखों से दूर हुआ वो दिल से भी दूर हो जाता है, परन्तु सोशल मीडिया ने इस कथन को पूरी तरह झुठला दिया है ,आज यदि आप चाहे तो मीलों दूर बैठे अपने बच्चे, माता पिता और अन्य सम्बन्धियों से बात कर सकते है, उनको देख सकते है। इसकी वजह से दूरियां सिमट गई हैं।
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- ये देन भी सोशल मीडिया की ही है कि आप वर्षों पूर्व जिन स्कूल, कॉलेज के मित्रों से दूर हुए थे, उन को ढूंढ कर अपने जीवन में वापिस ला सकते है। उनकी वर्तमान जिंदगी से जुड़ सकते है, अपनी पुरानी यादें फिर से ताज़ा कर सकते है।
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- यदि किन्हीं मजबूरियों के कारण आप अपने रिश्तों के प्रति दायित्व नहीं पूरे कर पा रहे हैं तो भी ये मीडिया आप के ये दायित्व पूरे करने में आपका बड़ा सहायक हो सकता है, यहाँ बहुत सी ऐसी एप्प उपलब्थ है जिन से आप बहुत सी सेवाओं का लाभ केवल एक क्लिक या फ़ोन द्वारा प्राप्त कर सकते है और तनाव रहित होकर अपनों को जिम्मेदार होने का एहसास करवा सकते है। ये एप्प चिकित्सा सुविधा, खरीदारी सम्बन्धी, घर के रखरखाव से संबंधित, होटल बुकिंग, कैब बुकिंग आदि अनेक सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं।
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- रिश्तों को जोड़ कर रखने में खास दिनों की शुभकामनाये तथा दुःख के समय प्रकट की गयी संवेदनाये अपनी अहम भूमिका निभाती है। सोशल मीडिया द्वारा ये कार्य भी आसानी से हो जाता है। आप की प्रकट की गयी भावनाये अच्छे रिश्तों की नींव होती है जिन पर प्रेम व विश्वास की नींव टिकी होती है। यदि आप ये दिन भूल भी रहे है तो भी ये प्लेटफॉर्म आप को याद करवा देते है।
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- इतना ही नहीं सोशल मीडिया हमारे लिए नए रिश्तों के द्वार भी खोलता है, अपने स्वभाव व रुचियों के अनुरूप, एक सी सोच वाले व्यक्तियों के साथ मित्रता का दायरा बढ़ता है। जिनके साथ आप अपनी अभिव्यक्ति को उड़ान दे सकते हैं।
हर सिक्के के दो पहलू होते है। सोशल मीडिया का भी दूसरा पहलू है जो नकारात्मक है।
सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव
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- एक तरफ तो सोशल मीडिया बहुत दूर के रिश्ते और अजनबी लोगों को नजदीक ला रहा है वही दूसरी तरफ पास के रिश्ते दूर होते जा रहे हैं। मीलों दूर के रिश्तों की पल पल की खबर हमें हो सकती है पर घर के दूसरे कोने में जीवनसाथी, माता-पिता, बच्चे उपेक्षित भी हो रहे होते हैं। हमारे ऑनलाइन रिश्ते जो बहुत दूर हैं वो हमारे आत्मीय हो जाते हैं और पास रहने वाले ऑफलाइन रिश्तों की लाइट कम होते-होते ऑफ ही हो जाती है।
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- आज का युवा वर्ग तो सोशल मीडिया के जाल में बुरी तरह फँस गया है, रिश्तों की गरमाहट से दूर, घर में अलग-थलग रहना एक आदत में शुमार हो गया है। एक काल्पनिक जीवन में रहने से रिश्तों में उदासीनता का समावेश होता जा रहा है।
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- सोशल मीडिया एकाउंट में लगे पासवर्ड, झूठी आई.डी. और प्रोफाइल, अपनी गतिविधियों को गोपनीय रखना, ये सब पारिवारिक रिश्तों में दूरी लाते हैं, शक उत्पन्न करते हैं जिनसे रिश्तों में दरार आ सकती है। साथ रह कर भी विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान न करना रिश्तों में नीरसता का कारण बनता है ।
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- बिना सोचे समझे, दूसरे व्यक्ति की भावना को समझे बगैर, उनकी निजी भावना को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करना भी रिश्ते की मिठास को कड़वाहट में बदलता है। धर्म और राजनीति से जुड़े पहलुओं पर अपनी बेबाक अभिव्यक्ति भी रिश्तों के लिए खतरनाक हो सकती है। हर पोस्ट और फोटो पर अच्छे कमेंट की ही अपेक्षा की जाती है। ऐसे में रिश्ते वास्तविक न हो कर बनावटी से हो जाते हैं।
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- नए बने रिश्ते (सगाई, विवाह और मित्रता) भी सोशल मीडिया के प्रभाव में टूट जाते हैं। कई बार ऐसा देखा जाता है कि नये रिश्ते में जुड़ने से ज्यादा साथी अपने मोबाइल फोन में ज्यादा व्यस्त होते हैं या फिर एक दूसरे की निजी जिंदगी में तांक-झांक करते हैं जिससे बनने से पहले ही रिश्ता खराब हो जाता है।
अब ये पूरी तरह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने रिश्ते किस तरह संभालते हैं। सोशल मीडिया को दोष देना उचित नहीं होगा। एक समय सीमा का निर्धारण करना होगा, जब हमारे अपने लोग, अपने रिश्ते पास हो तो उन के साथ समय बिताएं, सामाजिक बनें, यदि सामाजिक समारोह में गये हैं तो अत्यंत आवश्यक होने पर ही सोशल मीडिया में सलग्नं हों।
हमें सोशल मीडिया को वरदान बनाना होगा, अभिशाप नहीं, इसका आनंद लें इसको एडिक्शन न बनायें।