आज की दुनिया वर्चुअल दुनिया, और आज के बच्चे हाई टेक बच्चे कुछ ऐसा ही नजारा हर तरफ दिखाई देता हैं। किसी भी घर में प्रवेश करने पर बच्चो के हाथ में पेन या पेंसिल भले न दिखाई दे परन्तु मोबाइल फ़ोन जरूर दिख जायेगा, मोबाइल की लत घर में ही नहीं है, ये कहना ज्यादा उचित होगा कि हर स्थान पर बच्चे मोबाइल की स्क्रीन पर डूबे नजर आएंगे।
चीन में तो बच्चो का मोबाइल की लत (मोबाइल एडिक्शन) इतना ज्यादा बढ़ गया हैं कि इसकी तुलना हेरोइन एडिक्शन से की जाती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में बच्चे डायपर पहन कर मोबाइल पर गेम खेलते हैं, जिससे गेम के दौरान टॉयलेट जाने का भी व्यवधान न हो। भारत के बच्चे भी एक दिन इसी स्थिति में आ सकते हैं यदि उनका मोबाइल प्रेम इसी तरह बढ़ता रहा तो।मोबाइल एक साइलेंट किलर की तरह बच्चो के संस्कार, व्यवहार, परिवार सब को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा हैं।
बच्चो में मोबाइल की लत के बहुत से दूरगामी दुष्प्रभाव हैं:-
शारीरिक दुष्प्रभाव
मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से रेडिएशन के कारण आँखों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे आँखों में दर्द और लालिमा रहती है। इसी रेडिएशन से सिर में दर्द रहना शुरू हो जाता है।
आँखों पर अत्यधिक दवाब से अन्य चीज़ो पर फोकस करने में परेशानी होने लगती है, ऐसे बच्चो की नजर भी बहुत जल्दी कमजोर हो जाती है, जल्दी ही चश्मा लग जाता है।
हर समय गर्दन झुका कर मोबाइल में बिजी रहने से गर्दन और कंधो में भी दर्द आरम्भ हो जाता है। यदि बहुत छोटी उम्र के बच्चे मोबाइल पर ज्यादा समय बिताते हैं तो उनकी हाथो की मांसपेशिया कमजोर हो जाती हैं। जिससे आगे आने वाले समय में उनको लिखने के लिए पेंसिल, पेन पकड़ने में दिक्कत आती है।
मोबाइल में व्यस्त बच्चे शारीरिक रूप से भी शिथिल हो जाते हैं, हर समय एक ही जगह बैठे रहने से बालपन मे ही चुस्ती फुर्ती की जगह आलस्य आ जाता है।
मानसिक दुष्प्रभाव
मोबाइल की लत के कारण बच्चो में डिप्रेशन की भी समस्या उत्त्पन होने लगती है, यदि किसी दिन उनको मोबाइल न मिले तो वो बहुत एकाकी अनुभव करते हैं, किसी मित्र के पास ज्यादा लेटेस्ट मोबाइल हो, जिसमे ज्यादा फीचर्स हो तो भी उनमे इसी बात को लेकर डिप्रेशन हो जाता है।
लर्निंग डिसेबिलिटी भी दृष्टि गोचर होती हैं, साधारण से प्रश्न का उत्तर भी बच्चा गूगल सर्च करके देना पसंद करता है, सिंपल मैथ की प्रॉब्लम मोबाइल के कैलकुलेटर द्वारा हल की जाती हैं, मोबाइल नंबर तक याद नहीं होते, क्यों कि प्रत्येक नंबर एक टच की दूरी पर ही होता है। फ़ोन पर अत्यधिक निर्भरता दिमागी कसरत की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती इसीलिए फ़ोन के बिना बच्चे बहुत बैचेन दिखते हैं।
आज के बच्चे एक काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, वास्तविकता से उनका नाता खत्म सा होता जा रहा है, दोस्ती भी ऑनलाइन है, उनके रोल मॉडल भी ऑनलाइन गेम्स के सुपर हीरो हैं। सुपर हीरोज की तरह ही वो भी बनना चाहते हैं, कुछ बच्चो पर तो ये सुपर हीरो इतने हावी हो जाते हैं कि वो आपराधिक कार्य भी करने लगते हैं उनकी तरह, और अपना भविष्य बर्बाद कर लेते हैं।
सेल्फी का बढ़ता क्रेज बच्चो के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इस एडिक्शन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान बच्चो की पढ़ाई का होता है, देश का भविष्य मोबाइल की गिरफ्त में आकर अपनी पढ़ाई लिखाई चौपट कर लेता है।
ऐसे बच्चे अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते, उनमे सहन शीलता की कमी देखी जाती है। जबरदस्ती उनसे मोबाइल लेने पर वो आपे से बाहर हो जाते हैं। थोड़ी देर को यदि इंटरनेट कनेक्टिविटी में बाधा आ जाये तो भी उनका गुस्सा चरम सीमा पर देखने को मिलता है।
इंटरनेट पर हर उचित और अनुचित साइट को देखना, बच्चो के कोमल मन और मस्तिक को गलत राह पर ले जाता है। बच्चों का अपने बचपन से कनेक्शन खत्म हो जाता है, उनकी मासूमियत लुप्त हो जाती है।
इतने दुष्प्रभाव के बाद भी हम बच्चो से मोबाइल छीन नहीं सकते हैं क्यों कि ये उनकी जरूरत भी है, हमारी सहूलियत भी, बच्चो के घर से बाहर होने पर ये मोबाइल ही हमे उनकी कुशलता से अवगत कराता है। सही तरीके से उपयोग किया जाए तो जानकारी का बहुत सुलभ साधन है।
बच्चो में मोबाइल की लत को सुधारने के लिए कुछ सुझाव
कुछ सीमा रेखा निर्धारित कर के बच्चो को मोबाइल की लत से रोका जा सकता है:-
- शुरुआत से ही रोक लगानी होगी, अक्सर देखा जाता है की छोटे बच्चे को खाना खिलाने के लिए या रोना बंद कराने के लिए यू ट्यूब पर गाने, पोएम आदि लगा कर बहलाया जाता है। ये गलत हैं, इसी से धीरे धीरे बच्चे को इसकी आदत बनने लगती है और ये आदत कब लत में बदल जाती है खुद पेरेंट्स को ही नहीं पता चलता।
- फ़ोन यूज़ करने का समय निर्धारित करना होगा, हालांकि ये थोड़ा कठिन हैं क्योकि कई बार बच्चे कुछ जरूरी जानकारी के लिए भी फ़ोन यूज़ कर रहे होते हैं। फिर भी सख्त दिशा निर्देश देना ही बच्चे के हित में होगा, यहां तात्पर्य डांटने या चिल्लाने से नहीं हैं, न ही मनुहार से हैं अपितु अपने माता पिता होने के अधिकार से समय निर्धारित करे। एक बार समय निर्धारित हो जाने पर उसका हर स्थिति में पालन करवाए।
- बच्चो से मोबाइल लिया हैं तो उसके बदले उनको कुछ और अच्छा करने को प्रेरित करे, पार्क में खेलना, बागवानी, ड्राइंग, म्यूजिक, स्टोरी बुक्स पढ़ना या जो भी उनको पसंद हो उनकी रूचि का रचनात्मक कार्य उनको करने दे।
- अपने बच्चो पर लागू नियम खुद भी पालन करे, रचनात्मक कार्य करे, मोबाइल का प्रयोग अत्यधिक आवश्यक होने पर ही करे।
- अपने बच्चों को अपना समय दे, उनसे बाते करे, उनकी प्रशंसा करे, उनकी समस्या सुने।
किसी भी अच्छे कार्य के पुरस्कार स्वरुप मोबाइल यूज़ करने की इजाजत न दे, ये काम करो फिर मोबाइल देंगे ऐसी शर्त भूल कर न रखे।
बच्चो को मोबाइल से होने वाले दुष्परिणाम से अवगत कराते रहे, उनको काल्पनिक दुनिया से वास्तविक दुनिया में लाने की अपनी कोशिश हमेशा करते रहे।
डिजिटल डेटॉक्स को भी आजमाया जा सकता है, यानि कुछ दिन के लिए इंटरनेट बंद रखा जाये, उस दौरान परिवार और दूसरी गतिविधियों में समय का सदुपयोग किया जाये।
मोबाइल का जादू बच्चो के सर चढ़ कर बोलता है, इसकी लत छूटना आसान नहीं होता, अपने बच्चो की मदद करे इस से छुटकारा पाने में, यदि कॉउंसलर की सलाह लेना चाहे तो वो भी एक अच्छा विकल्प है, कॉउंसलर मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चो को इस क़ैद से बाहर आने में सहयोग देते है।
भारत दुनिया में दूसरा बड़ा मोबाइल यूजर हैं, पहला नंबर चीन का है, इसमें एक बहुत बड़ा प्रतिशत बच्चो का है, इस को खतरे की घंटी समझना चाहिए। देश के विकास के लिए टेक्नोलॉजी बहुत जरूरी हैं पर उसपर इतनी निर्भरता ना हो कि देश का भविष्य बच्चे ही गलत रास्तो पर चलने लगे।
सरकार को भी कुछ प्रतिबन्ध इस क्षेत्र में लगाने होंगे, ब्लू व्हेल चैलेंज गेम जैसे खतरनाक मोबाइल खेलो पर सरकार की तरफ से रोक लगानी होगी।