समय आ गया है की अब भारत भी “हम दो हमारे दो” के कानून को अपना लें। आज भारत की बढ़ती जनसंख्या दर देश के सामने विकट परिस्थितियाँ पैदा कर रही है। यह देश के विकास के लिए ही नहीं अपितु गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, एवं गरीबी जैसी समस्या उत्पन्न कर रही है। बढ़ती जनसंख्या रोजगार की समस्या के साथ-साथ असमानता, अपराध, एवं ख़राब जीवन स्तर जैसी विकट समस्याएँ लेकर देश के सामने खड़ी है।
वैसे अगर देखा जाये तो जनसंख्या किसी भी राष्ट्र के लिए अमूल्य पूंजी होती है, जो देश में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है और उपभोग भी करती है, जनसंख्या देश के आर्थिक विकास का संवर्धन करती है तभी जनसंख्या को किसी देश के साधन और साध्यता का दर्जा दिया जाता है। परन्तु हर चीज की एक सीमा होती है एक मर्यादा होती है। किसी भी चीज की अति का परिणाम सदैव नुकसान दायक ही होता है चाहे वह किसी देश की जनसंख्या ही क्यों ना हो, और आज हमारा देश भी इसी जनसंख्या वृद्धि की समस्या से ही जूझ रहा है।
भारतीय जनसंख्या की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत की जनसंख्या चीन के बाद पूरे विश्व में दूसरे नंबर पर है। अनुमानित आंकड़ों के आधार पर 2030 तक भारत की जनसंख्या चीन से भी आगे निकल जाएगी। एक विभागीय आकड़ों के अनुसार 1990 में भारत की जनसंख्या 87,37,85,000 थी और वही 2010 में बढकर 1,22,46,14,000 हो गयी, मतलब 17.1% की वृद्धि और सम्पूर्ण विश्व में दूसरे स्थान पर भारत देश जनसंख्या वृद्धि में। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जनसंख्या संभावना 2019 रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या एक दशक के भीतर चीन से आगे निकल जाएगी।
देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या आज अत्यंत भयावह स्थिति में है जिसके फलस्वरूप देश को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने का परिणाम यह है कि स्वतंत्रता के इतने सालो बाद भी देश में लगभग 40% लोग गरीबी रेखा के नीचे ही जीवन यापन कर रहे है और गरीबी के कारण ही आज भी करोड़ों लोग निरक्षर है।
जनसंख्या का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
अधिक जनसंख्या कई मामलों में देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाती है, प्राकृतिक संसाधनों पर आबादी का बढ़ता हुआ प्रभाव आर्थिक प्रगति को रोक देता है, जनसंख्या कि तीव्र वृद्धि के कारण देश के अनेक समस्या खड़ी है। अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है और पोषक तत्वों की दृष्टि से भी वह सही नहीं होता है।
देश की बहुसंख्यक जनसंख्या आज भी गरीबी, दरिद्रता, ख़राब जीवन स्तर, भुखमरी, बीमारी, कुपोषण, जैसी समस्याओं का सामना कर रही है। जिस तीव्रता से जनसंख्या में वृद्धि हुई है, संसाधनों का उत्पादन उस तीव्रता से नहीं बढ़ा है तभी अनेक क्षेत्रों के विभिन्न विभागों में बहु मात्रा में खाद्यानों की सामग्री विदेशों से आयात करनी पड़ रही है जिस से देश की ऋण ग्रस्तता बढ़ रही है।
यदि शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाये तो साक्षरता दर भी निम्न पाई जाती है। और अशिक्षा के कारण लोग रूढ़िवादी और अंध विश्वासी हो जाते है और परिवार नियोजन, बीमारियों की रोकथाम, स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम कम सफल हो पाते है इसी कारण लोगों का स्वास्थ्य स्तर निम्न एवं दयनीय होता है।
जनसंख्या का संसाधनों पर प्रभाव
यदि ऊर्जा संसाधनों की दृष्टि से देखा जाये तो इसमें भी कमी आई है। कोयला, गैस, पेट्रोलियम पदार्थ जैसी प्राकृतिक संसाधन भी तेज़ी से कम हो रहे है। जबकि संसाधनों के दोहन में, विकास योजना के क्रियान्वयन में ऊर्जा की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है।
आवासीय दृष्टि से यदि देखा जाये तो, आवासीय क्षेत्रों में भी वृद्धि हो रही है जनसंख्या की बढ़ती दर के कारण अधिवासों के निर्माण के लिए उपजाऊ भूमि का उपयोग हो रहा है इस कारण उपजाऊ भूमि तेज़ी से घटती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों में रोजगार की प्राप्ति के लिए नगरों की और उमड़ती हुई भीड़ से नगरों में आवासों, सड़कों, पेय जल, सफाई, शिक्षा, चिकित्सा, आदि की कमी के कारण सामाजिक एवं सांस्कृतिक समस्याएं पैदा हो गयी है एवं नगरों के आस पास के गाँवों की भी उपजाऊ कृषि भूमि नष्ट होती जा रही है।
जनसंख्या वृद्धि की रोकथाम हेतु उठाये गए कदम
बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप सबसे विकट समस्या है बेरोजगारी। जनसंख्या वृद्धि की तुलना में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पा रहे है, बहुत से लोगों को उनकी योग्यता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पा रहा है। गाँवों में कार्यशील जनसंख्या मुख्य रूप से कृषि पर ही आधारित है। कृषि उत्पादकता कम होने से ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेरोजगारी बढ़ रही है और नगरीय क्षेत्रों की और जनसंख्या का पलायन हो रहा है।
जनसंख्या वृद्धि की रोकथाम एवं शिक्षा स्तर में वृद्धि हेतु भारतीय सरकार ने अनेकों कदम उठायें है एवं अनेको योजनाओं का क्रियान्वयन किया, लेकिन गहनता से देखा जाये तो इसका कोई खास प्रभाव नहीं हुआ। देश को जरूरत है अब चीन जैसे ठोस कदम उठाने की। देश को जरूरत है अब वास्तव में इस समस्या को गहनता से लेने की। वह नीति लाने की जो प्रभावशील हो ‘हम दो हमारे दो’ की नीति, दो बच्चों की नीति परिवार नियंत्रण की एक योजना है, जो माता पिता को अपने परिवार को दो बच्चों तक सीमित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। देश में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए और इस नीति को सम्पूर्ण भारत में लागू करने के लिए यह ठोस कदम लेना अतिआवश्यक है।
उल्लेखनीय है की इसी बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए पड़ोसी देश चीन ने 1979 में एक बच्चे की नीति को लागू किया था। यह चीन की परिवार नियोजन नीति थी। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में चीन में बच्चों के जन्म लेने की संख्या में लगभग 6 लाख 30 हज़ार की गिरावट दर्ज की गयी वही संतुलन बनाये रखने के लिए चीनी सरकार ने वर्ष 2016 में एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया और आज हमारे देश को भी उसी नीति की जरूरत है। हम दो हमारे दो की नीति की, जिस से देश को प्रबलता मिल सके और देश की भयावह परिस्थिति से निजात पाई जा सके।
“हम दो हमारे दो” का कानून
हमारा भारत भी अब जल्द ही ला सकता है ‘हम दो हमारे दो’ का कानून। यह याचिका राष्ट्रपति तक पहुँचाई जा चुकी है एवं जल्द ही किसी प्रभावशाली निर्णय का देश को बेसब्री से इन्तजार है।
राकेश सिन्हा द्वारा जुलाई 2019 में जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, 2019 (या, जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019) पहले से ही राज्यसभा में पेश किया जा चूका है। इस विधेयक का उद्देश्य भारत की जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना है। प्रस्तावित विधेयक पर संसद के 125 मंत्रियों (सांसदों) द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।
7 फरवरी 2020 को, संविधान (संशोधन) विधेयक, 2020 को शिवसेना सांसद अनिल देसाई द्वारा राज्यसभा में पेश किया गया था। देसाई ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 47A में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है।