महिलाओं के जीवन में वयस्क होने के साथ मासिक चक्र का अध्याय प्रारंभ होता है जिसे हम माहवारी तथा मासिक धर्म भी कहते हैं। यह मासिक चक्र एक स्वस्थ महिला के जीवन में हर महीने आता है और सामान्यतः दो से पांच दिन तक की इसकी अवधि है। यह अवधि लगभग प्रत्येक महिला के लिए कष्टप्रद होती है। मासिक धर्म के पहले कुछ दिनों के कष्ट प्रत्येक स्त्री के लिए एक से नहीं होते, प्रत्येक महिला का अपना-अपना अनुभव होता है फिर भी हम यहाँ कुछ ऐसे कारणों का जिक्र करेंगे जो अधिकतर द्रष्टिगोचर होते हैं।
प्रीमेंस्टुअल सिंड्रोम (PMS) क्या है?
मासिक धर्म का चक्र आने से पहले महिलाएं कुछ शारीरिक तथा भावनात्मक बदलाव अपने में महसूस करती हैं जिन्हें प्रीमेस्टुअल सिंड्रोम (PMS) कहा जाता है। ये कारण हर महीने लगभग एक से होते है। अधिकतर दिखने वाले ये बदलाव हैं :
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- त्वचा पर मुहासे तथा एक्ने हो जाना या बढ़ जाना
- कमर, पेट में दर्द का अनुभव होना
- स्तनों पर सूजन तथा कोमलता आ जाना
- अनिद्रा की शिकायत होना
- थकान तथा सिर दर्द रहना
- पेट की समस्यायें दृष्टिगोचर होना, उल्टियां होना
- व्यवहार में बेचैनी तथा चिड़चिड़ापन आना
- तनाव की अधिकता
- मूड में बदलाव,रोने की इच्छा होना
- शरीर में ऐंठन होना
- ज्यादा भूख लगना आदि
वास्तव में, ये सब लक्षण महिला के शरीर में होने वाले हार्मोन के बदलाव के कारण होते हैं। ये हार्मोन महिला को गर्भधारण के लिए तैयार करते हैं, गर्भशाय की परत को मजबूत बनाते हैं, जिससे यदि स्त्री गर्भधारण करे तो भ्रूण इसमें विकसित हो सके। जब स्त्री गर्भधारण नहीं करती तो गर्भशाय की यह मोटी परत टूटकर रक्तस्राव के रूप में बाहर निकल जाती है। यही मासिक धर्म है।
प्रीमेंस्टुअल सिंड्रोम (PMS) से राहत पाने के उपाय
वैसे तो इन कारणों को खत्म नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ ऐसे उपाय है जिन्हें अपनाकर इन कारणों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और जीवन को कुछ हद तक सामान्य बनाया जा सकता है :
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- नियमित व्यायाम द्वारा शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं।योग द्वारा तनाव कम होता है।
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- पेट की समस्याओं के निदान के लिए थोड़ी थोड़ी मात्रा में पौष्टिकआहार लेना चाहिए। चीनी, नमक तथा गरिष्ठ भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। चाय, कॉफी इत्यादि का सेवन अत्यधिक कम करना चाहिए।
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- पानी ज्यादा पीना चाहिए।
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- फोलिक एसिड, विटामिन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि के सप्लीमेंट लेने से मूड अच्छा रहता है तथा शरीर की ऐंठन में लाभ मिलता है।
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- जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए जिससे इन कारणों का उचित तरीके से निदान किया जा सके। जैसे समय पर सोना और पौष्टिक खाना।
PMS के लक्षणों से राहत पाने के लिए भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्द्ति योग तथा योग मुद्रा का समर्थन करती है। मासिक पूर्व की समस्या को दूर करने में योग मुद्रा भी बहुत लाभदायक है। मुद्रा का अर्थ है हाथ के भाव। कुछ योग मुद्रा में हम केवल अपनी उँगली से हाथ को स्पर्श करके ही अपनी सोच को प्रभावित कर सकते है और आंतरिक रूप से अपना शरीर स्वस्थ रख सकते हैं। मुद्रा तंत्रिका से सम्बंधित होती है इसलिए इसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है जिससे हमारे शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है।
मासिक पूर्व (PMS) की समस्यायों में कुछ योग मुद्राओं का अभ्यास अत्यंत लाभदायक है जैसे :
ज्ञान मुद्रा / चिनमुद्रा
पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर दोनों हाथों की कोहनी घुटनों पर रखें, अंगूठे को तर्जनी उंगली (Index finger ) के पोर से मिला लें बाकी उंगली सीधी रखें। इसी मुद्रा को ज्ञान मुद्रा/ चिनमुद्रा कहते है। इस मुद्रा को करने से मस्तिष्क में संतुलन आता है ,ऊर्जा का अनुभव होता है ,शरीर का भारीपन समाप्त होकर शरीर हल्का लगता है। मासिक पूर्व के तनाव में कमी आती है। इस में सांस के प्रवाह पर ध्यान दिया जाता है। यह मुद्रा कमर दर्द तथा ऐंठन में आराम देती है। इस मुद्रा द्वारा एकाग्रता बढ़ती है तथा नींद में सुधार होता है।
रजमुद्रा
यह मुद्रा विशेषत स्त्रियों के लिए ही होती है। कनिष्ठा उंगली (little finger) को हथेली की जड़ में मोड़ कर बाकि तीन उंगलियों को सीधा रखने से रजमुद्रा बनती है। मासिकधर्म से पहले होने वाली सभी समस्याओ (PMS) को यह मुद्रा दूर कर सकती है। सिरदर्द ,कमरदर्द, छाती में दर्द ,पेट में दर्द में, इस मुद्रा का अभ्यास लाभकारी है।
सूर्यमुद्रा
अनामिका ऊँगली (Ring finger) को हथेली की तरफ मोड़ कर उसे अँगूठे से दबाएं ,बाकि उंगलिया सीधी रखे ,यह सूर्यमुद्रा है। मसिकपूर्व की पाचन समस्या के निदान में इस मुद्रा का अभ्यास बहुत लाभकारी है। इस मुद्रा को करने से बेचैनी कम होती है ,मन शांत रहता है, शरीर की सूजन कम होती है और शरीर हल्का बनता है।
पृथ्वी मुद्रा
अनामिका तथा अंगूठे के पोर को जोड़ें। दोनों हाथों द्वारा इस मुद्रा को करें। इस मुद्रा को आरामदायक अवस्था में बैठकर करें। दिन में जब भी समय हो ये मुद्रा की जा सकती है। यह मुद्रा शरीर को शांतकर थकान मिटाती है। त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए यह मुद्रा लाभदायक है। त्वचा में चमक लाती है तथा बालों की समस्याओं को भी दूर करती है। मासिक पूर्व त्वचा की समस्याओं को दूर करने में इस मुद्रा का उपयोग किया जा सकता है। बेहतर परिणाम के लिए इसका नियमित अभ्यास करें।
वरुन मुद्रा
यह मुद्रा नाम के अनुरूप हमारे शरीर के जल तत्व पर प्रभाव डालती है। इस मुद्रा के प्रभाव से जल का संतुलन बनता है जिससे त्वचा पर चमक आती है। कनिष्ठा उँगली के छोर को अंगूठे के छोर से स्पर्श करें। बाकी उंगलियां सीधी रखें। इस मुद्रा के अभ्यास से त्वचा की नमी बनी रहती है जिससे संक्रमण तथा मुँहासे नहीं होते।
मासिक पूर्व (PMS) की समस्याओं के लिए कुछ योगासन भी उपयोगी होते हैं। ये आसन सूक्ष्म आसन होते हैं जिनका शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं होती। ऐसे समय में कठिन आसन नहीं करने चाहिए। भुजंग आसन, तितली आसन, शशांक आसन, धनुरासन, पश्चिमोत्तान आसन, नौकासन, पर्वतासन आदि से लाभ मिलता है।
योग मुद्रा में शक्ति निहित है, इस शक्ति का उपयोग करके हम शरीर और मस्तिष्क में संतुलन स्थापित कर सकते हैं। यह शक्ति और कहीं नहीं हमारे हाथों में ही है। स्त्री जननी है, इस महान उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्त्री का शरीर अपने को तैयार करता है। इस दौरान कुछ कष्टों का अनुभव भी होता है। यदि योग मुद्राओं का नियमित अभ्यास किया जाए तो इन कष्टों को बहुत कम किया जा सकता है और एक सामान्य जीवन व्यतीत किया जा सकता है। इसलिए दुःख न सहें, दर्द न सहें, योग मुद्राएं करें। मासिक व मासिक पूर्व की समस्याओं से राहत पाएं।